नि स्वार्थ कर्म का फल motivational moral stories in hindi

 


Motivational Hindi stories किसी आश्रम में एक ऋषि और एक 15 वर्ष का शिष्य उनके साथ रहता था। वह ऋषि से शिक्षा  ग्रहण करता था। ऋषि भी उसकी लगन और मेहनत से प्रभावित थे। वह उनका प्रिय शिष्य था।

एक दिन ऋषि ध्यान में बैठे थे तभी उन्होंने देखा कि उनके प्रिय शिष्य की सात दिन बाद मृत्यू हो जाएगी। यह देख कर वे दुखी हुए क्योंकि वे जो भी भविष्य देखते वह कभी असत्य नहीं होता था। यदपि वे ऋषि थे और जानते थे कि सभी को एक ना दिन मरना है फिर शोक कैसा, लेकिन फिर भी वे अपने शिष्य के लिए भावुक थे। 

उन्होंने सोचा इन सात दिनों में यदि उनके शिष्य की कोई इच्छा है तो वे उससे अवश्य पूछेंगे। उन्होंने उसे बुलाया और पूछा,  तुम एक आज्ञाकारी शिष्य हो तुम्हारी कोई इच्छा है तो तुम बता सकते है। शिष्य बोला, आपने मुझे शिक्षा देने योग्य समझा यही मेरे लिए सबसे बड़ी बात है। लेकिन यदि आप मेरी इच्छा जानना चाहते है तो मै कुछ दिन के लिए अपने घर जाना चाहता हूं। 

ऋषि जानते थे घर जाने के बाद यह कभी वापस ना आएगा क्योंकि तब तक इसकी मृत्यू हो जाएगी और आखरी बार वे उसे देख भी ना पाएंगे। लेकिन उन्होंने उस जाने दिया।

शिष्य अत्यंत प्रसन्न था। वह अपने घर जा रहा था । रास्ते में उसने देखा पगडंडी के किनारे चींटियों का एक बिल है और खेत का पानी बार बार उनके बिल से टकरा रहा है, जिससे काफी चींटियां बह जा रही है। शिष्य को दया आ गई उसने बिल के पास मिट्टी की एक छोटी दीवार बना दी जिससे हजारों चींटियों की जान बच गई। उस पल को भूलकर वह अपने घर पहुंच गया और दिन व्यतीत करने लगा।

इधर ऋषि को दिन गुजरने के साथ चिंता होने लगी। इसी तरह सात दिन बीत गए। सातवे दिन ऋषि बैठे थे तभी उन्होंने देखा उनका शिष्य आ रहा है उन्हें विश्वास नहीं हुआ, उनके द्वारा देखा गया भविष्य कभी गलत नहीं होता था। 

शिष्य को देखकर उनकी आंखो को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने शिष्य से यहां आने से पहले का पूरा हाल बताने को कहा, शिष्य ने सब बताया, साथ ही चींटियों वाली बात भी बताई।

ऋषि को जानने में तनिक भी देर ना लगी कि हजारों चींटियों की नि स्वार्थ जान बचाने के कारण उनके शिष्य की मृत्यु टल गई। उसने अपने कर्म से अपने भाग्य को बदल दिया और वह भी फल की चिंता किए बिना।

read this  2 best स्वामी विवेकानंद जी की motivational short stories in hindi